जानती हूँ सबको एक दिन जाना होता है.. मुझे याद है जब माँ हॉस्पिटल में थी और भाई साहब भाव विह्वल होकर खुद को सम्हाल नहीं पा रहे थे. उन्होंने झिंझोड़ कर माँ को कहा, "माँ तू मुझे छोड़ कर मत जा, मई तेरे बिना नहीं रह पाउँगा ..." फिर माँ ने अपनी टूटी उखडती साँसों को सम्हाल भाई साहब को जोर से दांता, "तुझे क्या लगा की माँ बाप हमेशा रहेंगे? किसी के माता पिता हमेशा साथ नहीं रहते. हमने तुझे इतना बड़ा बना दिया की तुम अब खुद की और दूसरों की देखभाल कर सको. ...
माँ बीमार थी..जीवन और मृत्यु के अटूट नियमों को हमेशा रेखांकित करती रही..माँ के बीमार रहने के कारण दुखी मन से ही सही पर हम सब धीरे धीरे उसी अनुपस्थिति को बर्दाश्त करने लायक हो रहे थे..पर पापा..उनकी उत्कट जिजीविषा और लंबी लंबी योजनाओं के अम्बार..गरजती आवाज़ में ये कहना कि .."बेटे चिंता नहीं, अभी हम जिन्दा हैं"..कभी हम सब ये सोच ही नहीं पाए कि पापा के बिना भी जीना होगा...
जब भी घर फोन करती तो माँ फोन उठाती, मैं कहती पापा कि आवाज़ सुननी है..फिर पापा माँ को कहती आप कुछ भी बोलिए वो सुनेगी..पापा इमोशनल हो जाते....मेरी आवाज़ तो सुन नहीं पाते पर अंदाजा लगते कि बेटी अब ये कह रही होगी, अब ये पूछ रही होगी..और इस तरह से मोनोलोग स्टाइल में बोलते जाते जैसे श्रोता भी वही हों और वक्ता भी.."ठीक है न, मैं भी ठीक हूँ, तुम अपने स्वास्थ्य पर ध्यान देना, और पैसे चाहिए क्या..खाना ठीक से खाना और जूस जरूर पीना..फिर माँ से पूछते मैंने सही सही तो जबाब दिया न..माँ हंस पड़ती..कहती जब आपने सुना ही नहीं कि उसने क्या पूछा तो आप जबाब कैसे दे रहे थे..तो फिर पापा रहस्यमयी आवाज़ में कहते ये बाप-बेटी के बीच कि टेलीपेथी है..कान नहीं काम करते तो क्या हुआ, मुझे सब पता है..
माँ बीमार थी..जीवन और मृत्यु के अटूट नियमों को हमेशा रेखांकित करती रही..माँ के बीमार रहने के कारण दुखी मन से ही सही पर हम सब धीरे धीरे उसी अनुपस्थिति को बर्दाश्त करने लायक हो रहे थे..पर पापा..उनकी उत्कट जिजीविषा और लंबी लंबी योजनाओं के अम्बार..गरजती आवाज़ में ये कहना कि .."बेटे चिंता नहीं, अभी हम जिन्दा हैं"..कभी हम सब ये सोच ही नहीं पाए कि पापा के बिना भी जीना होगा...
जब भी घर फोन करती तो माँ फोन उठाती, मैं कहती पापा कि आवाज़ सुननी है..फिर पापा माँ को कहती आप कुछ भी बोलिए वो सुनेगी..पापा इमोशनल हो जाते....मेरी आवाज़ तो सुन नहीं पाते पर अंदाजा लगते कि बेटी अब ये कह रही होगी, अब ये पूछ रही होगी..और इस तरह से मोनोलोग स्टाइल में बोलते जाते जैसे श्रोता भी वही हों और वक्ता भी.."ठीक है न, मैं भी ठीक हूँ, तुम अपने स्वास्थ्य पर ध्यान देना, और पैसे चाहिए क्या..खाना ठीक से खाना और जूस जरूर पीना..फिर माँ से पूछते मैंने सही सही तो जबाब दिया न..माँ हंस पड़ती..कहती जब आपने सुना ही नहीं कि उसने क्या पूछा तो आप जबाब कैसे दे रहे थे..तो फिर पापा रहस्यमयी आवाज़ में कहते ये बाप-बेटी के बीच कि टेलीपेथी है..कान नहीं काम करते तो क्या हुआ, मुझे सब पता है..